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सिंदूर तिलक वशीकरण मंत्र साधना सम्पूर्ण विधि के साथ |

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सिंदूर वशीकरण मंत्र से सिंदूर वशीकरण सिर्फ एक सिंदूर के तिलक से करे अपनी मन चाही स्त्री का वशीकरण।। साधनों आज मैं आपको सिंदूर तिलक वशीकरण मंत्र साधना के बारे मैं बताने जा रहा हूँ। कि आप कैसे सिर्फ एक सिंदूर के तिलक से वशीकरण कर सकते है। बिना किसी के पता लगे, और बिना कुछ कुछ खिलाय पिलाये। मैं आप सब को संपूर्ण विधि के साथ बताने वाला‌ हूँ। सिंदूर का परिचय साधकों सिंदूर का हमारी संस्कृति मे बहुत महत्व है। सिंदूर हमारे सनातन धर्म की हर पूजा-पाठ मे इस्तमाल होता है। यह दिखने मे “लाल‌‌ रंग” का होता है। सिंदूर को हिन्दू धर्म की विवाहित स्त्रियाँ अपनी मांग मे धारण करती है। यह विवाहित स्त्री की पहचान है। सिंदूर तिलक वशीकरण मंत्र साधना मित्रो आप सिंदूर वशीकरण साधना ! होली, दीपावली, व ग्रहण मे कर सकते है। यह साधना आप दो विधि से कर सकते है। वह दोनो विधि मै आपको‌ आज बताने जा‌‌ रहा हूँ। कि कैसे आप यह साधना सिद्ध कर सकते है। सिंदूर तिलक वशीकरण साधना मंत्र ॐ नमो आदेश गुरु का। सिंदूर की माया। सिंदूर नाम तेरी पत्ती। कामाख्या सिर पर तेरी उत्पत्ति। सिंदूर पढ़ि मैं लगाऊँ बिन्दी। वश अमुख होके रहे निर्बुध्दी।

Bhagwat Geeta 18 adhyay, or mahatmy in hindi

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श्रीमद्भगवद्गीताके अठारहवें अध्यायका माहात्म्य || Bhagwat Geeta 18 adhyay साधकों आप के लिए प्रस्तुत “Bhagwat Geeta 18 adhyay” श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18 व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत सहित श्रीपार्वतीजी ने कहा-भगवन् ! आपने सत्रहवें अध्याय का माहात्म्य बतलाया। अब अठारहवें अध्याय के माहात्म्य का वर्णन कीजिये। श्रीमहादेवजी ने कहा-गिरिनन्दिनि ! चिन्मय आनन्द की धारा बहाने वाले अठारहवें अध्याय के पावन माहात्म्य को जो वेद से भी उत्तम है, श्रवण करो। यह सम्पूर्ण शास्त्रों का सर्वस्व, कानों में पड़ा हुआ रसायन के समान तथा संसार के यातना-जाल को छिन्न-भिन्न करने वाला है। सिद्ध पुरुषों के लिये यह परम रहस्य की वस्तु है। इसमें अविद्या का नाश करने की पूर्ण क्षमता है। यह भगवान् विष्णु की चेतना तथा सर्वश्रेष्ठ परम पद है। इतना ही नहीं, यह विवेकमयी लताका मूल, काम-क्रोध और मदको नष्ट करने वाला, इन्द्र आदि देवताओं के चित्त का विश्राम-मन्दिर तथा सनक- सनन्दन आदि महायोगियों का मनोरञ्जन करने वाला है। इसके पाठ मात्र से यमदूतों की गर्जना बंद हो जाती है। पार्वती ! इससे बढ़कर कोई ऐसा रहस्यमय उपदेश नहीं

Bhagwat Geeta 17 adhyay, and mahatmy

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श्रीमद्भगवद्गीता के सत्रहवें अध्याय का माहात्म्य || Bhagwat Geeta 17 adhyay साधकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। “Bhagwat Geeta 17 adhyay”  श्रीमद्भगवद्गीता का 17 अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत मे। श्रीमहादेव जी कहते हैं-पार्वती! सोलहवें अध्याय का माहात्म्य बतलाया गया। अब सत्रहवें अध्याय की अनन्त महिमा श्रवण करो। राजा खड्ग बाहु के पुत्र का दुःशासन नामक एक नौकर था। वह बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था। एक बार वह माण्डलीक राजकुमारों के साथ बहुत धन की बाजी लगा कर हाथी पर चढ़ा और कुछ ही कदम आगे जाने पर लोगों के मना करने पर भी वह मूढ़ हाथी के प्रति जोर-जोर से कठोर शब्द करने लगा। उसकी आवाज सुनकर हाथी क्रोध से अंधा हो गया और दुःशासन पैर फिसल जाने के कारण पृथ्वी पर गिर पड़ा। दुःशासन को गिरकर कुछ-कुछ उच्छ्वास लेते देख काल के समान निरंकुश हाथी ने क्रोध में भरकर उसे ऊपर फेंक दिया। ॐ श्रीपरमात्मने नमः ऊपर से गिरते ही उसके प्राण निकल गये। इस प्रकार काल वश मृत्यु को प्राप्त होने के बाद उसे हाथी की योनि मिली और सिंहल द्वीप के महाराज के यहाँ उसने अपना बहुत समय व्यतीत किया। सिंहल द्वीप के राजा की महाराज ख

Bhagwat Geeta 16 adhyay, or mahatmy

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श्रीमद्भगवद्गीता का 16 अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 16 adhyay,   साधकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। “Bhagwat Geeta 16 adhyay”  श्रीमद्भगवद्गीता का 16 अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत मे। श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय का माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती ! अब मैं गीता के सोलहवें अध्याय का माहात्म्य बताऊँगा, सुनो । गुजरात में सौराष्ट्र नामक एक नगर है। वहाँ खड्गबाहु नाम के राजा राज्य करते थे, जो दूसरे इन्द्र के समान प्रतापी थे। उनके एक हाथी था, जो मद बहाया करता और सदा मद से उन्मत्त रहता था। उस हाथी का नाम अरिमर्दन था। एक दिन रात में वह हठात् साँकलों और लोहे के खम्भों को तोड़-फोड़कर बाहर निकला। हाथीवान् उसके दोनों ओर अङ्कुश लेकर डरा रहे थे। किंतु क्रोधवश उन सबकी अवहेलना करके उसने अपने रहने के स्थान-हथिसार को ढहा दिया। उसपर चारों ओर से भालों की मार पड़ रही थी; फिर भी हाथीवान् ही डरे हुए थे, हाथी को तनिक भी भय नहीं होता था। इस कौतूहलपूर्ण घटना को सुनकर राजा स्वयं हाथी को मनाने की कला में निपुण राजकुमारों के साथ वहाँ आये। आकर उन्होंने उस बलवान् दैतैले हाथी को देखा । नगर के

Bhagwat Geeta 15 adhyay, or mahatmy in hindi

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श्रीमद्भगवद्गीता 15 अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 15 adhyay   साधकों आप के लिए प्रस्तुत “Bhagwat Geeta 15 adhyay” श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत सहित श्रीमद्भगवद्गीताके पंद्रहवें अध्यायका माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं पार्वती ! अब गीता के पंद्रहवें अध्याय का माहात्म्य सुनो। गौड़देश में कृपाण-नरसिंह नामक एक राजा थे, जिनकी तलवार की धार से युद्ध में देवता भी परास्त हो जाते थे। उनका बुद्धिमान् सेनापति शस्त्र और शास्त्र की कलाओं का भण्डार था। उसका नाम था सरभ मेरुण्ड। उसकी भुजाओं में प्रचण्ड बल था। एक समय उस पापी ने राजकुमारों सहित महाराज का वध करके स्वयं ही राज्य करने का विचार किया। इस निश्चय के कुछ ही दिनों बाद वह हैजे का शिकार होकर मर गया। थोड़े समय में वह पापात्मा अपने पूर्वकर्म के कारण सिन्धुदेश में एक तेजस्वी घोड़ा हुआ। उसका पेट सटा हुआ था। घोड़े के लक्षणों का ठीक-ठीक ज्ञान रखने वाले किसी वैश्य के पुत्र ने बहुत-सा मूल्य देकर उस अश्वको खरीद लिया और यत्न के साथ उसे राजधानीतक वह ले आया । वैश्य कुमार वह अश्व राजा को देने को लाया था । यद्यपि राजा उस वैश्यकुम

Bhagwat Geeta 14 adhyay, or mahatmy || हिन्दी व संस्कृत सहित

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श्रीमद्भगवद्गीता का 14 अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 14 adhyay   साधकों आप सब के लिए प्रस्तुत “Bhagwat Geeta 14 adhyay” श्रीमद्भगवद्गीता चौदहवां अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत मे। श्रीमद्भगवद्गीताके चौदहवें अध्यायका माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं पार्वती! अब मैं भव-बन्धन से छुटकारा पाने के साधन भूत चौदह वें अध्याय का माहात्म्य बतलाता हूँ, तुम ध्यान देकर सुनो। सिंहलद्वीप में विक्रम बेताल नामक एक राजा थे, जो सिंह के समान पराक्रमी और कलाओं के भण्डार थे। एक दिन वे शिकार खेलने के लिये उत्सुक होकर राजकुमारों सहित दो कुतियों को साथ लिये वन में गये। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने तीव्र गति से भागते हुए खरगोश के पीछे अपनी कुतिया छोड़ दी। उस समय सब प्राणियों के देखते-देखते खरगोश इस प्रकार भागने लगा मानो कहीं उड़ गया हो । दौड़ते-दौड़ते बहुत थक जाने के कारण वह एक बड़ी खंदक (गहरे गड़े) में गिर पड़ा। गिरने पर भी वह कुतिया के हाथ नहीं आया और उस स्थानपर जा पहुँचा, जहाँ का वातावरण बहुत ही शान्त था। वहाँ हरिन निर्भय होकर सब ओर वृक्षों की छाया में बैठे रहते थे। बंदर भी अपने-आप टूटकर गिरे नारियल के

Bhagwat Geeta 13 adhyay, or mahatmy

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 माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 13 adhyay   साधकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। “Bhagwat Geeta 13 adhyay”  श्रीमद्भगवद्गीता तेरहवां अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत में। श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय का माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती ! अब तेरहवें अध्याय की अगाध महिमा का वर्णन सुनो। उस को सुनने से तुम बहुत प्रसन्न होओगी । दक्षिण दिशा में तुङ्गभद्रा नाम की एक बहुत बड़ी नदी है। उसके किनारे हरिहर पुर नामक रमणीय नगर बसा हुआ है। वहाँ हरिहर नाम से साक्षात् भगवान् शिवजी विराजमान हैं, जिनके दर्शनमात्र से परम कल्याण की प्राप्ति होती है। हरिहर पुर में हरि दीक्षित नामक एक श्रोत्रिय ब्राह्मण रहते थे, जो तपस्या और स्वाध्याय में संलग्न तथा वेदों के पारगामी विद्वान् थे। उनके एक स्त्री थी, जिसे लोग दुराचारा कहकर पुकारते थे। इस नाम के अनुसार ही उसके कर्म भी थे। वह सदा पति को कुवाच्य कहती थी। उसने कभी भी उन के साथ शयन नहीं किया। पति से सम्बन्ध रखने वाले जितने लोग घर पर आते, उन सबको डाँट बताती और स्वयं कामोन्मत्त होकर निरन्तर व्यभिचारियों के साथ रमण किया करती थी।एक दिन नगर को इधर-उधर आते-जाते हु