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Showing posts from January, 2021

Bhagwat Geeta 16 adhyay, or mahatmy

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श्रीमद्भगवद्गीता का 16 अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 16 adhyay,   साधकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। “Bhagwat Geeta 16 adhyay”  श्रीमद्भगवद्गीता का 16 अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत मे। श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय का माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती ! अब मैं गीता के सोलहवें अध्याय का माहात्म्य बताऊँगा, सुनो । गुजरात में सौराष्ट्र नामक एक नगर है। वहाँ खड्गबाहु नाम के राजा राज्य करते थे, जो दूसरे इन्द्र के समान प्रतापी थे। उनके एक हाथी था, जो मद बहाया करता और सदा मद से उन्मत्त रहता था। उस हाथी का नाम अरिमर्दन था। एक दिन रात में वह हठात् साँकलों और लोहे के खम्भों को तोड़-फोड़कर बाहर निकला। हाथीवान् उसके दोनों ओर अङ्कुश लेकर डरा रहे थे। किंतु क्रोधवश उन सबकी अवहेलना करके उसने अपने रहने के स्थान-हथिसार को ढहा दिया। उसपर चारों ओर से भालों की मार पड़ रही थी; फिर भी हाथीवान् ही डरे हुए थे, हाथी को तनिक भी भय नहीं होता था। इस कौतूहलपूर्ण घटना को सुनकर राजा स्वयं हाथी को मनाने की कला में निपुण राजकुमारों के साथ वहाँ आये। आकर उन्होंने उस बलवान् दैतैले हाथी को देखा । नगर के

Bhagwat Geeta 15 adhyay, or mahatmy in hindi

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श्रीमद्भगवद्गीता 15 अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 15 adhyay   साधकों आप के लिए प्रस्तुत “Bhagwat Geeta 15 adhyay” श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत सहित श्रीमद्भगवद्गीताके पंद्रहवें अध्यायका माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं पार्वती ! अब गीता के पंद्रहवें अध्याय का माहात्म्य सुनो। गौड़देश में कृपाण-नरसिंह नामक एक राजा थे, जिनकी तलवार की धार से युद्ध में देवता भी परास्त हो जाते थे। उनका बुद्धिमान् सेनापति शस्त्र और शास्त्र की कलाओं का भण्डार था। उसका नाम था सरभ मेरुण्ड। उसकी भुजाओं में प्रचण्ड बल था। एक समय उस पापी ने राजकुमारों सहित महाराज का वध करके स्वयं ही राज्य करने का विचार किया। इस निश्चय के कुछ ही दिनों बाद वह हैजे का शिकार होकर मर गया। थोड़े समय में वह पापात्मा अपने पूर्वकर्म के कारण सिन्धुदेश में एक तेजस्वी घोड़ा हुआ। उसका पेट सटा हुआ था। घोड़े के लक्षणों का ठीक-ठीक ज्ञान रखने वाले किसी वैश्य के पुत्र ने बहुत-सा मूल्य देकर उस अश्वको खरीद लिया और यत्न के साथ उसे राजधानीतक वह ले आया । वैश्य कुमार वह अश्व राजा को देने को लाया था । यद्यपि राजा उस वैश्यकुम

Bhagwat Geeta 14 adhyay, or mahatmy || हिन्दी व संस्कृत सहित

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श्रीमद्भगवद्गीता का 14 अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 14 adhyay   साधकों आप सब के लिए प्रस्तुत “Bhagwat Geeta 14 adhyay” श्रीमद्भगवद्गीता चौदहवां अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत मे। श्रीमद्भगवद्गीताके चौदहवें अध्यायका माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं पार्वती! अब मैं भव-बन्धन से छुटकारा पाने के साधन भूत चौदह वें अध्याय का माहात्म्य बतलाता हूँ, तुम ध्यान देकर सुनो। सिंहलद्वीप में विक्रम बेताल नामक एक राजा थे, जो सिंह के समान पराक्रमी और कलाओं के भण्डार थे। एक दिन वे शिकार खेलने के लिये उत्सुक होकर राजकुमारों सहित दो कुतियों को साथ लिये वन में गये। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने तीव्र गति से भागते हुए खरगोश के पीछे अपनी कुतिया छोड़ दी। उस समय सब प्राणियों के देखते-देखते खरगोश इस प्रकार भागने लगा मानो कहीं उड़ गया हो । दौड़ते-दौड़ते बहुत थक जाने के कारण वह एक बड़ी खंदक (गहरे गड़े) में गिर पड़ा। गिरने पर भी वह कुतिया के हाथ नहीं आया और उस स्थानपर जा पहुँचा, जहाँ का वातावरण बहुत ही शान्त था। वहाँ हरिन निर्भय होकर सब ओर वृक्षों की छाया में बैठे रहते थे। बंदर भी अपने-आप टूटकर गिरे नारियल के

Bhagwat Geeta 13 adhyay, or mahatmy

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 माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 13 adhyay   साधकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। “Bhagwat Geeta 13 adhyay”  श्रीमद्भगवद्गीता तेरहवां अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत में। श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय का माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती ! अब तेरहवें अध्याय की अगाध महिमा का वर्णन सुनो। उस को सुनने से तुम बहुत प्रसन्न होओगी । दक्षिण दिशा में तुङ्गभद्रा नाम की एक बहुत बड़ी नदी है। उसके किनारे हरिहर पुर नामक रमणीय नगर बसा हुआ है। वहाँ हरिहर नाम से साक्षात् भगवान् शिवजी विराजमान हैं, जिनके दर्शनमात्र से परम कल्याण की प्राप्ति होती है। हरिहर पुर में हरि दीक्षित नामक एक श्रोत्रिय ब्राह्मण रहते थे, जो तपस्या और स्वाध्याय में संलग्न तथा वेदों के पारगामी विद्वान् थे। उनके एक स्त्री थी, जिसे लोग दुराचारा कहकर पुकारते थे। इस नाम के अनुसार ही उसके कर्म भी थे। वह सदा पति को कुवाच्य कहती थी। उसने कभी भी उन के साथ शयन नहीं किया। पति से सम्बन्ध रखने वाले जितने लोग घर पर आते, उन सबको डाँट बताती और स्वयं कामोन्मत्त होकर निरन्तर व्यभिचारियों के साथ रमण किया करती थी।एक दिन नगर को इधर-उधर आते-जाते हु

Bhagwat Geeta 12 adhyay, or mahatmy

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श्रीमद्भगवद्गीता बारहवां अध्याय व माहात्म्य ।।  Bhagwat Geeta 12 adhyay   साधकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। “Bhagwat Geeta 12 adhyay”  श्रीमद्भगवद्गीता बारहवां अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत मे। श्रीमद्भगवद्गीताके बारहवें अध्याय का माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती ! दक्षिण दिशा में कोल्हा पुर नाम का एक नगर है, जो सब प्रकार के सुखों का आधार, सिद्ध-महात्माओं का निवास स्थान तथा सिद्धि-प्राप्ति का क्षेत्र है। वह पराशक्ति भगवती लक्ष्मी का प्रधान पीठ है। सम्पूर्ण देवता उसका सेवन करते हैं। वह पुराण प्रसिद्ध तीर्थ भोग एवं मोक्ष प्रदान करने वाला है। वहाँ करोड़ों तीर्थ और शिवलिङ्ग हैं। रुद्रगया भी वहीं है। वह विशाल नगर लोगों में बहुत विख्यात है। एक दिन कोई युवक पुरुष उस नगर में आया। [ वह कहीं का राजकुमार था ] उसके शरीर का रंग गोरा, नेत्र सुन्दर, ग्रीवा शङ्ख के समान, कंधे मोटे, छाती चौड़ी तथा भुजाएँ बड़ी-बड़ी थीं नगर में प्रवेश करके सब ओर महलों की शोभा निहारता हुआ वह देवेश्वरी महालक्ष्मी के दर्शनार्थ उत्कण्ठित हो मणिकण्ठ तीर्थ में गया और वहाँ स्नान करके उसने पितरोंका तर्पण किया। फिर मह