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Showing posts from December, 2020

Bhagwat Geeta 11 adhyay, or mahatmy

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श्रीमद्भगवद्गीता 11 अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta 11 adhyay   पाठकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। “Bhagwat Geeta 11 adhyay”  श्रीमद्भगवद्गीता का 11 अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत सहित। श्रीमद्भगवद्गीताके ग्यारहवें अध्यायका माहात्म्य श्रीमहादेवजी कहते हैं-प्रिये ! गीता के वर्णन से सम्बन्ध रखने वाली कथा एवं विश्वरूप अध्याय के पावन माहात्म्य को श्रवण करो। विशाल नेत्रों-वाली पार्वती ! इस अध्याय के माहात्म्य का पूरा-पूरा वर्णन नहीं किया जा सकता। इसके सम्बन्ध में सहस्रों कथाएँ हैं। उनमें से एक यहाँ कही जाती है। प्रणीता नदी के तटपर मेघङ्कर नामसे विख्यात एक बहुत बड़ा नगर है। उसके प्राकार (Bhagwat Geeta 11 adhyay, or चहारदिवारी) और गोपुर (द्वार) बहुत ऊँचे हैं। वहाँ बड़ी-बड़ी विश्रामशालाएँ हैं, जिनमें सोने के खंभे शोभा दे रहे हैं। उस नगर में श्रीमान्, सुखी, शान्त, सदाचारी तथा जितेन्द्रिय मनुष्यों का निवास है। वहाँ हाथमें शाङ्ग नामक धनुष धारण करने वाले जगदीश्वर भगवान् विष्णु विराजमान हैं। वे परब्रह्मके साकार स्वरूप हैं, संसार के नेत्रों को जीवन प्रदान करने वाले हैं। उनका गौरवपूर्ण श्रीविग

Bhagwat Geeta dasama adhyay, or mahatm

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श्रीमद्भगवद्गीता दसवां अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat Geeta dasama adhyay   पाठकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। “Bhagwat Geeta dasama adhyay”  श्रीमद्भगवद्गीता दसवां अध्याय व माहात्म्य हिन्दी मे, इस अध्याय मे श्री कृष्ण जी अर्जुन को अपने स्वरुप का वर्णन करते है। श्रीमद्भगवद्गीताके दसवें अध्यायका माहात्म्य भगवान् शिव कहते हैं —सुन्दरि ! अब तुम दशम अध्याय के माहात्म्य की पर म पावन कथा सुनो, जो स्वर्ग रूपी दुर्ग में जाने के लिये सुन्दर सोपान और प्रभाव की चरम सीमा है। काशीपुरी में धीर बुद्धि नामसे विख्यात एक ब्राह्मण था, जो मुझ में प्रिय नन्दी के समान भक्ति रखता था। वह पावन कीर्ति के अर्जन में तत्पर रहने वाला, शान्त चित्त और हिंसा, कठोरता एवं दुःसाहस से दूर रहने वाला था। जितेन्द्रिय होने के कारण वह निवृत्ति- मार्ग में ही स्थित रहता था। उसने वेद रूपी समुद्र का पार पा लिया था। वह सम्पूर्ण शास्त्रों के तात्पर्य का ज्ञाता था। उसका चित्त सदा मेरे ध्यान में संलग्न रहता था। वह मन को अन्तरात्मा में लगाकर सदा आत्म तत्त्वका साक्षात्कार किया करता था; अत: जब वह चलने लगता, तब मैं प्रेम वश उसके पीछे दौड़-दौ

Bhagwat Geeta navam adhyay, or mahatm

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श्रीमद्भगवद्गीता नवम अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat geeta navam adhyay पाठकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। ” Bhagwat Geeta navam adhyay ” श्रीमद्भगवद्गीता नवम‌ अध्याय व माहात्म्य हिन्दी में।     श्रीमद्भगवद्गीताके नवें अध्यायका माहात्म्य महादेव जी कहते हैं-पार्वती ! अब मैं आदर पूर्वक नवम अध्याय के माहात्म्य का वर्णन करूँगा, तुम स्थिर होकर सुनो। नर्मदा के तटपर माहिष्मती नाम की एक नगरी है। वहाँ माधव नाम के एक ब्राह्मण रहते थे, जो वेद-वेदाङ्गों के तत्त्वज्ञ और समय-समय पर आने वाले अतिथि यों के प्रेमी थे। उन्होंने विद्या के द्वारा बहुत धन कमा कर एक महान् यज्ञ का अनुष्ठान आरम्भ किया । उस यज्ञ में बलि देने के लिये एक बकरा मँगाया गया। जब उसके शरीर की पूजा हो गयी, तब सब को आश्चर्य में डालते हुए उस बकरे ने हँसकर उच्च स्वर से कहा-‘ब्रह्मन् ! इन बहुत-से यज्ञों द्वारा क्या लाभ है। इनका फल तो नष्ट हो जाने वाला है तथा ये जन्म, जरा और मृत्यु के भी कारण हैं। यह सब करने पर भी मेरी जो वर्तमान दशा है, इसे देख लो।’ बकरे के इस अत्यन्त कौतूहल जनक वचन को सुनकर यज्ञमण्डप में रहने वाले सभी लोग बहुत ही विस्मित हुए।

Bhagwat Geeta ashtam adhyay, or mahatm

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श्रीमद्भगवद्गीता अष्टम अध्याय व माहात्म्य ।। Bhagwat geeta ashram adhyay.   पाठकों आप सब के लिए प्रस्तुत है। ” Bhagwat Geeta ashtam adhyay ”  श्रीमद्भगवद्गीता अष्टम अध्याय व माहात्म्य हिन्दी मे। श्रीमद्भगवद्गीताके आठवें अध्याय का माहात्म्य भगवान् शिव कहते हैं —देवि ! अब आठवें अध्याय का माहात्म्य सुनो ! उसके सुनने से तुम्हें बड़ी प्रसन्नता होगी। [ लक्ष्मी जी के पूछने पर भगवान् विष्णु ने उन्हें इस प्रकार अष्टम अध्याय का माहात्म्य बतलाया था। ] दक्षिण में आमर्दक पुर नामक एक प्रसिद्ध नगर है। वहाँ भाव शर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था, जिसने वेश्या को पत्नी बनाकर रखा था। वह मांस खाता, मदिरा पीता, श्रेष्ठ पुरुषों का धन चुराता,परायी स्त्रीसे व्यभिचार करता और शिकार खेलने में दिलचस्पी रखता था। वह बड़े भयानक स्वभाव का था और मन में बड़े-बड़े हौसले रखता था। एक दिन मदिरा पीने वालों का समाज जुटा था। उसमें भावशर्माने भर पेट ताड़ी पी- खूब गले तक उसे चढ़ाया; अतः अजीर्ण से अत्यन्त पीड़ित होकर वह पापात्मा काल वश मर गया और बहुत बड़ा ताड़का वृक्ष हुआ। उसकी घनी और ठंडी छाया का आश्रय लेकर ब्रह्म-राक्षसभाव को प्र

Bhagwat Geeta saptam adhyay , or mahatm

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श्रीमद्भगवद्गीता सप्तम अध्याय व महात्म्य ।। bhagwat geeta saptam adhyay   पाठकों आपके लिए प्रस्तुत है। ” bhagwat geeta saptam adhyay ” श्रीमद्भगवद्गीता सप्तम अध्याय व माहात्म्य हिन्दी व संस्कृत में। श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्यायका माहात्म्य भगवान् शिव कहते हैं – पार्वती ! अब मैं सातवें अध्याय का माहात्म्य बतलाता हूँ, जिसे सुनकर कानों में अमृत-राशि भर जाती है। पाटलिपुत्र नामक एक दुर्गम नगर है, जिसका गोपुर (द्वार) बहुत ही ऊँचा है। उस नगर में शङ्कुकर्ण नामक एक ब्राह्मण रहता था, उसने वैश्य-वृत्तिका आश्रय लेकर बहुत धन कमाया, किंतु न तो कभी पितरों का तर्पण किया और न देवताओं का पूजन ही। वह धनोपार्जन में तत्पर होकर राजाओं को ही भोज दिया करता था। एक समय की बात है, उस ब्राह्मण ने अपना चौथा विवाह करने के लिये पुत्रों और बन्धुओं के साथ यात्रा की। मार्ग में आधी रात के समय जब वह सो रहा था, एक सर्पने कहीं से आकर उसकी बाँह में काट लिया। उसके काटते ही ऐसी अवस्था हो गयी कि मणि, मन्त्र और ओषधि आदि से भी उसके शरीर की रक्षा असाध्य जान पड़ी। तत्पश्चात् कुछ ही क्षणों में उसके प्राण-पखेरू उड़ गये। फिर बहु