Sai baba vrat katha vidhi, full information
साईं बाबा के व्रत की सही पूजा विधि, व्रत कथा ,साईं चालीसा, साईं स्मरण, साईं के 11 वचन और साईं आरती करने से पाएं सम्पूर्ण व्रत का फल , sai baba vrat katha, vidhi
** व्रत की विधि **
साईंबाबा के पूजन के लिए सभी दिनों में गुरुवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता हैं. साईं व्रत कोई भी कर सकतें हैं चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग या महिला ये व्रत कोई भी जाती-पति के भेद भाव: बिना कोई भी व्यक्ति कर सकता है वैसे भी हम सभी जानते हैं कि साईं बाबा जात-पात को नहीं मानते थे और उनका कहना था कि ईश्वर तो एक ही है. सबका मालिक एक है।
ये व्रत कोई भी गुरूवार को साईं बाबा का नाम लेकर शुरू किया जा सकता. सुबह या शाम को साईं बाबा के फोटो की पूजा करना किसी आसन पर पीला या लाल कपडा बिछा कर उस पर साईं बाबा का फोटो रख कर स्वच्छ पानी से पोछ कर चंदन या कुमकुम का तिलक लगाना चाहिये और उन पर पीला फूल या हार चढाना चाहिये |
पूजन विधि
अगरबत्ती और दीपक जलाकर साईं व्रत की कथा पढ़ना चाहिये और साईं बाबा का स्मरण करना चाहिये और प्रसाद बाटना चाहिये प्रसाद में कोई भी फलाहार या मिठाई बाटी जा सकती है. अगर संभव हो तो साई बाबा के मंदिर में जाकर भक्तिभाव से बाबा के का फोटो रख कर स्वच्छ पानी से पोछ कर चंदन या कुमकुम का तिलक लगाना चाहिये और उन पर पीला फूल या हार चढाना चाहिये |
शिरडी के साई बाबा के व्रत की संख्या 9 हो जाने पर अंतिम व्रत के दिन पांच गरीब व्यक्तियों को भोजन और सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए।इसके साथ ही साई बाबा की कूपा का प्रचार करने के लिये 7,11 ,21साई पुस्तकें या साईं सत्चरित्र ,अपने आस-पास के लोगों में बांटनी चाहिए. इस प्रकार इस व्रत को समाप्त किया जाता है. इसे उददापन के नाम से भी जाना जाता है।
**1. साई बाबा व्रत कथा **
1. एक शहर में कोकिला नाम की स्त्री और उसके पति महेशभाई रहते थे. दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय था. दोनों में आपस में स्नेह और प्रेम था. पर महेश भाई कभी कभार झगडा करने की आदत थी. परन्तु कोकिला अपने पति के क्रोध का बुरा न मानती थी.
2. वह धार्मिक आस्था और विश्वास वाली महिला थी. उसके पति का काम-धंधा भी बहुत अच्छा नहीं था. इस कारण वह अपना अधिकतर समय अपने घर पर ही व्यतीत करता था. समय के साथ काम में और कमी होने पर उसके स्वभाव में और अधिक चिडचिडापन रहने लगा.
3. एक दिन दोपहर के समय कोकिला के दरवाजे पर एक वृ्द्ध महाराज आयें. उनके चेहरे पर गजब का तेज था. वृ्द्ध महाराज के भिक्षा मांगने पर उसे दाल-चावल दियें. और दोनों हाथो से उस वृ्द्ध बाबा को नमस्कार किया.
**2.साई बाबा व्रत कथा**
4. बाबा के आशिर्वाद देने पर कोकिला के मन का दु:ख उसकी आंखों से छलकने लगा. इस पर बाबा ने कोकिला को श्री साई व्रत के बारे में बताया और कहा कि इस व्रत को 9 गुरुवार तक एक समय भोजन करके करना है. पूर्ण विधि-विधान से पूजा करने, और साईबाबा पर अट्टू श्रद्वा रखना. तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी.
5. महाराज के बताये अनुसार कोकिला ने व्रत गुरुवार के दिन साई बाबा का व्रत किया. और 9वेम गुरुवार को गरीबों को भोजन भी दिया. साथ ही साईं पुस्तकें भेंट स्वरुप दी. ऎसा करने से उसके घर के झगडे दूर हो गये़ और उसके घर की सुख शान्ति में वृ्द्धि हुई. इसके बाद दोनों का जीवन सुखमय हो गया.
6. एक बार उसकी जेठानी ने बातों-बातों में उसे बताया, कि उसके बच्चे पढाई नहीं करते यही कारण है. कि परीक्षा में वे फेल हो जाते है. कोकिला बहन ने अपनी जेठानी को श्री साई बाबा के 9 व्रत का महत्व बताया. कोकिला बहन के बताये अनुसार जेठानी ने साई व्रत का पालन किया. उसके थोडे ही दिनों में उसके बच्चे पढाई करने लगें. और बहुत अच्छे अंकों से पास हुए।
भैरों सट्टा साधना। ये सच्ची साधना है। जरुर सिद्ध होगी।
** साईं चालीसा **
श्री साँई के चरणों में, अपना शीश नवाऊं मैं
कैसे शिरडीसाँई आए, सारा हाल सुनाऊ मै
कौन है माता, पिता कौन है, यह न किसी ने भी जाना।
कहां जन्म साई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना
कोई कहे अयोध्या के, ये रामचन्द्र भगवान हैं।
कहता कोई साँई बाबा, पवन-पुत्र हनुमान हैं
कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानन हैं साँई।
गोकुल-मोहन, देवकी नन्दन हैं साँई
शंकर समझ भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते।
कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साँई की करते
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साँई हैं सच्चे भगवान ।
बड़े दयालु, दीनबन्धु, कितनों को दिया जीवनदान
कई बरस पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात ।
किसी भाग्यशाली की शिरडी में, आई थी बारात
आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुनदर।
आया, आकर वहीं बद गया, पावन शिरडी किया नगर
कई दिनों तक रहा भटकता, भिक्षा मांगी उसने दर-दर।
और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर
जैसे-जैसे उमर बढ़ी, बढ़ती ही वैसे गई शान।
घर-घर होने लगा नगर में, साँई बाबा का गुणगान
चालीसा भाग 1
दिगदिगन्त में लगा गूंजने, फिर तो साई जी का नाम।
दीन मुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम
बाबा के चरणों जाकर, जो कहता मैं हूं निर्धन।
दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते द:ख के बंधन
कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझ को संतान।
एवं अस्तु तब कहकर साँई, देते थे उसको वरदान
स्वयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुखी जन का लख हाल।
अंत:करन भी साँई का, सागर जैसा रहा विशाल
भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत बड़ा धनवान।
माल खजाना बेहद उसका, केवल नहीं रही संतान
लगा मनाने साँईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो।
झंझा से झंकृत नैया को, तुम ही मेरी पार करो
कुलदीपक के अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया।
आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया
दे दे मुझको पुत्र दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर।
और किसी की आश न मुझको, सिर्फ भरोसा है तुम पर
अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में धर के शीश।
तब प्रसन्न होकर बाबा ने, दिया भक्त को यह आशीष
अल््ला भला करेगा तेरा, पुत्र जन्म हो तेरे घर।
कृपा रहे तुम पर उसकी, और तेरे उस बालक पर
अब तक नहीं किसी ने पाया. साई की कपा का पार।
पुत्र रतन दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार
तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार।
सांच को आंच नहीं है कोई, सदा झूठ की होती हार
मैं हूं सदा सहारे उसके, सदा रहूंगा उसका दास।
साँई जैसा प्रभु मिला है, इतनी की कम है क्या आद
मेरा भी दिन था इक ऐसा, मिलती नहीं मुझे थी रोटी।
तन पर कपड़ा दूर रहा था, शेष रही नन्ही सी लंगोटी
सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था।
दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नि बरसाता था
धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलम्ब न था।
बिना भिखारी में दुनिया में, दर-दर ठोकर खाता था
ऐसे में इक मित्र मिला जो, परम भक्त साँई का था।
जंजालों से मुक्त, मगर इस, जगती में वह मुझसा था
बाबा के दर्शन के खातिर, मिल दोनों ने किया विचार।
साँई जैसे दयामूर्ति के दर्शन को हो गए तैय
पावन शिरडी नगर में जाकर, देखी मतवाली मूर्ति ।
धन्य जन्म हो गया कि हमने, दुःख सारा काफूर हो गया।
संकट सारे मिटे और विपदाओं का अंत हो गया
मान और सम्मान मिला, भिक्षा में हमको बाबा से।
प्रतिबिंबित हो उठे जगत में, हम साई की आभा से
बाबा ने सम्मान दिया है, मान दिया इस जीवन में ।
इसका ही सम्बल ले, मैं हंसता जाऊंगा जीवन में
साँई की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हुआ
चालीसा भाग 2
“काशीराम” बाबा का भक्त, इस शिरडी में रहता था।
मैं साई का साँई मेरा, वह दुनिया से कहता था
सींकर स्वयं वस्त्र बेचता, ग्राम नगर बाजारों में ।
झंकृत उसकी हृदतंत्री थी, साँई की झनकारों में
स्तब्ध निशा थी, थे सोये, रजनी आंचल में चांद सितारे।
नहीं सूझता रहा हाथ, को हाथ तिमिर के मारे
वस्त्र बेचकर लौट रहा था, हाय! हाट से काशी।
विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन, आता था वह एकाकी
घेर राह में खड़े हो गए, उसे कुटिल अन्यायी।
मारो काटो लूटो इसको, ही ध्वनि पड़ी सुनाई
लूट पीटकर उसे वहां से, कुटिल गये चम्पत हो।
आधघातों से मर्माहत हो, उसने दी थी संज्ञा खो
बहुत देर तक पड़ा रहा वह, वहीं उसी हालत में
जाने कब कुछ होश हो उठा, वहीं उसकी पलक में ॥
अनजाने ही उसके मुंह से, निकल प्रड़ा था साई।
जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में, बाबा को प्ड़ी सुनाई॥
क्षुब्ध हो उठा मानस उनका, बाबा गए विकल हो।
लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सन्मुख हो ॥
Bhairo Baba Satta Sadhna ।। भैरों बाबा सट्टा साधना
उन्मादी से इधर-उधर तब, बाबा लेगे भटकने।
सन्मुख चीजें जो भी आई, उनको लगने पटकने॥
और धधकते अंगारों में, बाबा ने अपना कर डाला।
हुए सशंकित सभी वहाँ, लख ताण्डवनृत्य निराला ॥
समझ गए सब लोग, कि कोई भक्त प्रड़ा संकट में।
क्षुभित ख़ड़े थे सभी वहाँ, पर प्रड़े हुए विस्मय में॥
उसे बचाने की ही खातिर, बाबा आज विकल है।
उसकी ही पीड़ा से पीडित, उनकी अन्त:स्थल है॥
इतने में ही विविध ने अपनी, विचित्रता दिखलाई।
लख कर जिसको जनता की, श्रद्धा सरिता लहराई॥
लेकर संज्ञाहीन भक्त को, गाड़ी एक वहाँ आई।
सन्मुख अपने देख भक्त को, साई की आंखें भर आई॥
शांत, धीर, गंभीर, सिन्धु सा, बाबा का अन्त:स्थल।
आज न जाने क्यों रह-रहकर, हो जाता था चंचल ॥50॥
आज दया की मूर्ति स्वयं था, बना हआ उपचारी।
और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी॥
आज भक्ति की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था काशी।
उसके ही दर्शन की खातिर थे, उमड़े नगर-निवासी॥
जब भी और जहां भी कोई, भक्त प्रड़े संकट में।
उसकी रक्षा करने बाबा, आते हैं पलभर में ॥
युग-युग का है सत्य यह, नहीं कोई नई कहानी।
आपतग्रस्त भक्त जब होता, जाते खुद अन्तर्यामी॥
भेद-भाव से परे पुजारी, मानवता के थे साई
जितने प्यारे हिन्दू-मुस्लिम, उतने ही थे सिक्ख ईसाई ॥
भेद-भाव मन्दिर-मस्जिद का, तोड़-फोड़ बाबा ने डाल
राह रहीम सभी उनके थे, कृष्ण करीम अल्लाताला॥
घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा, मस्जिद का कोना-कोना।
मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम, प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना॥
चमत्कार था कितना सुन्दर, परिचय इस काया ने दी।
और नीम कड्डवाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी॥
सब को रनेह दिया साई ने, सबको संतुल प्यार किया।
जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उसको वही दिया॥
ऐसे स्नेहशील भाजन का, नाम सदा जो जपा करे।
पर्वत जैसा दुःख न क्यों हो, पलभर में वह दूर टरे ॥60॥
साई जैसा दाता हमने, अरे नहीं देखा कोई।
जिसके केवल दर्शन से ही, सारी विपदा दूर गई॥
तन में साई, मन में साई, साई-साई भजा करो।
अपने तन की सुधि-बुधि खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो॥
जब तू अपनी सुधि तज, बाबा की सुधि किया करेगा।
और रात-दिन बाबा-बाबा, ही तू रटा करेगा॥
तो बाबा को अरे ! विवश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी।
तेरी हर इच्छा बाबा को पूरी ही करनी होगी ॥
जंगल, जगंल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को।
एक जगह केवल शिरडी में, तू पाएगा बाबा को ॥
धन्य जगत में प्राणी है वह, जिसने बाबा को पाया।
दुःख में, सुख में प्रहर आठ हो, साई का ही गुण गाया॥
गिरे संकटों के पर्वत, चाहे बिजली ही टूट पड़े।
साई का ले नाम सदा तुम, सन्मुख सब के रहो अड़े॥
इस बूढ़े की सुन करामत, तुम हो जाओगे हैरान।
दंग रह गए सुनकर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान॥
एक बार शिरडी में साधु, ढ़ोंगी था कोई आया।
भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया॥
जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर, करने लगा वह भाषण।
कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन ॥70॥
औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शक्ति।
इसके सेवन करने से ही, हो जाती दुःख से मुक्ति॥
अगर मुक्त होना चाहो, तुम संकट से बीमारी से।
तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से, हर नारी से ॥
लो खरीद तुम इसको, इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी।
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह, गुण उसके हैं अति भारी॥।
जो है संतति हीन यहां यदि, मेरी औषधि को खाए।
पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे वह मुंह मांगा फल पाए॥
औषधि मेरी जो न खरीदे, जीवन भर पछताएगा।
मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहां आ पाएगा॥
दुनिया दो दिनों का मेला है, मौज शौक तुम भी कर लो।
अगर इससे मिलता है, सब कुछ, तुम भी इसको ले लो॥
हैरानी बढ़ती जनता की, लख इसकी कारस्तानी।
प्रमुदित वह भी मन- ही-मन था, लख लोगों की नादानी॥
खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौड़कर सेवक एक।
सुनकर भूकुटी तनी और, विस्मरण हो गया सभी विवेक ॥
हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ।
या शिरडी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ।॥
मेरे रहते भोली-भाली, शिरडी की जनता को।
कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को ॥80॥
पलभर में ऐसे ढोंगी, कपटी नीच लुटेरे को।
महानाश के महागर्त में पहुँचा, दूँ जीवन भर को ॥
तनिक मिला आभास मदारी, क्रूर, कुटिल अन्यायी को।
काल नाचता है अब सिर पर, गुस्सा आया साई को ॥
पलभर में सब खेल बंद कर, भागा सिर पर रखकर पैर।
सोच रहा था मन ही मन, भगवान नहीं है अब खैर॥।
सच है साई जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में।
अंश ईश का साई बाबा, उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में॥
स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभूषण धारण कर।
बढ़ता इस दुनिया में जो भी, मानव सेवा के पथ पर॥
वही जीत लेता है जगती के, जन जन का अन्त:स्थल।
उसकी एक उदासी ही, जग को कर देती है विह्वल॥
जब-जब जग में भार पाप का, बढ़-बढ़ ही जाता है।
उसे मिटाने की ही खातिर, अवतारी ही आता है॥
Shiv tandav stotram ।। हिन्दी अर्थ सहित
पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के।
दूर भगा देता दुनिया के, दानव को क्षण भर के॥
स्नेह सुधा की धार बरसने, लगती है इस दुनिया में।
गले परस्पर मिलने लगते, हैं जन-जन आपस में ॥
ऐसे अवतारी साई, मृत्युलोक में आकर।
समता का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप मिटाकर ॥90॥
नाम द्वारका मस्जिद का, रखा शिरडी में साई ने।
दाप, ताप, संताप मिटाया, जो कुछ आया साई ने ॥
सदा याद में मस्त राम की, बैठे रहते थे साई।
पहर आठ ही राम नाम को, भजते रहते थे साई॥
सूखी-रूखी ताजी बासी, चाहे या होवे पकवान।
सौदा प्यार के भूखे साई की, खातिर थे सभी समान ॥
स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे।
बड़े चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे॥
कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग में जाते थे।
प्रमुदित मन में निरख प्रकृति, छटा को वे होते थे॥
रंग-बिरंगे पुष्प बाग के, मंद-मंद हिल-डुल करके।
बीहड़ वीराने मन में भी स्नेह सलिल भर जाते थे॥
ऐसी समुधुर बेला में भी, दुख आपात, विपदा के मारे।
अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहते बाबा को घेरे॥
सुनकर जिनकी करूणकथा को, नयन कमल भर आते थे।
दे विभूति हर व्यथा, शांति, उनके उर में भर देते थे॥
जाने क्या अद्भुत शिक्त, उस विभूति में होती थी।
जो धारण करते मस्तक पर, दुःख सारा हर लेती थी॥
धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन, जो बाबा साई के पाए।
धन्य कमल कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाए 100॥
काश निर्भय तुमको भी, साक्षात् साई मिल जाता।
वर्षों से उजड़ा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता॥
गर पकड़ता मैं चरण श्री के, नहीं छोड़ता उम्रभर।
मना लेता मैं जरूर उनको, गर रूठते सा
Sankalp kya hota hai ।। संकल्प कैसे करते है।
आओ साईं आओ साईं !
आओ साईं आओ साई
भक्त तुम्हे बुलाते साईं
आस हमारी टूटे न
विशवाश हमारा डोले ना
आओ साईं आओ साईं
शिरडीवाले मेरे साईं
भक्तो के प्यारे साईं
करुणा के सागर साईं
आओ साईं आओ साईं
आओ साईं आओ साईं
दुख मिटाने आओ साईं
सुख देने आओ साईं
बालक तेरे बुलाते साईं
आओ साईं आओ साईं
आओ साईं आओ साईं
कीर्तन साईं पूजन साईं
रिद्धी साई सिद्धि साईं
आनंद साईं वैभव साई
आओ साईं आओ साईं
आओ साईं आओ साईं
तृप्ति साई मुक्ति साईं
पृथ्वी साई अम्बर साईं
शांति साईं उं साईं
आओ साईं आओ साईं !
पूरब साईं पशचिम साईं
उतर साईं दक्षिन साईं
आओ साईं आओ साईं
आओ साईं आओ साईं
हिन्दू साईं मुस्लिम साईं
जीवन साईं यात्रा साईं
आओ साईं आओ साईं
आओ साईं आओ साईं
धर्म साईं कर्म साईं
धयान साईं दान साईं
आओ साईं आओ साईं
आओ साईं आओ साईं
सत्यम साईं शिवम् साईं
सुन्दरम साईं भोला साईं
दयालु साईं ईशवर साईं
आओ साईं आओ साईं
आओ साईं आओ साईं
शक्ति साईं भक्ति साईं
शक्ति साईं भक्ति साईं
जीवन साईं मुक्ति साईं
दर्पण साईं अर्पण सा
** श्री साई बाबा के ग्यारह वचन **
जो शिरडी में आएगां। आपद . दूर भगाएगा ॥ 1 ॥
चढ़े समाधि की सीढ़ी पर। पैर तले दुःख की पीढ़ी पर ॥ 2॥
त्याग शरीर चला. जाऊँगा। भक्त हेतु दौड़ा आऊँगा ॥ 3॥
मन में रखना दूढ़ विश्वास। करे समाधि पूरी आस ॥ 4 ।
मुझे सदा जीवित ही . जानो। अनुभव कंरो सत्य पहचानो ॥ 5॥ –
मेरी शरण आ खाली जाये। हो तो कोई मुझे बताये ॥ 6॥
जैसा भाव रहा जिस जन का। वैसा रूप हुआ मेरे मन का ॥ 7॥
भार तुम्हारा मुझ पर होगा। वचन न मेरा झूठा होगा .॥ 8 ॥
आ सहायता लो: भरपूर। जो मांगा वह नहीं है दूर ॥9॥
मुझमें लीन वचन मन काया । उसका ऋण न कभी चुकाया ॥ 10॥ |
धन्य-धन्य व भक्त अनन्य। मेरी शरण तज जिसे न अन्य ॥ 11॥ |
ये मंत्र देगा आपको पद प्रमोशन मान सम्मान, व धन सम्पति
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